字幕列表 影片播放
से भी ज्यादा महत्वपूर्ण होगा
और यह सिर्फ आप, एक माता पिता होकर ही दे सकते हैं
मैं देखता हूँ कि ज्यादा से ज्यादा बच्चे इस विटामिन एन कि कमी से बुरी तरह प्रभावित हैं
और वो, उनके माता- पिता एवम् हमारी पूरी संस्कृति इसकी किंमत चूका रहे हैं
मैं अपनी बात एक अनूठी कहानी के द्वारा कहता हूँ
एक पिता जिसे मैं बिल नाम से बुलाऊंगा अपने पांच वर्ष के बेटे को वो सब कुछ देता था
जो उसका छोटा सा लड़का माँगता था
ज्यादातर माता – पिता की तरह बिल भी सबसे ज्यादा अपने बेटे को खुश देखना चाहता था
पर वास्तविक में वो खुश नहीं था
बजाय इसके वो चिडचिडा, उदास और ज़िद्दी हो गया
उसे दुसरे बच्चों के साथ घुलने-मिलने में परेशानी होती थी
इसके अलावा वो ज्यादा डिमांड करने वाला बन गया और मिलनेवाली चीज के लिए कदाचित ही सराहना
व्यक्त करता था या आभार मानता था, जो बिल और उसकी वाइफ देती थी |
क्या उसका बेटा उदास (डिप्रेशनमें ) था, बिल जानना चाहता था?
क्या उसे किसी उपचार कि जरुरत हैं ?
मैंने कहा, उसका बेटा ज्यादा प्यार दुलार के पूर्व अनुमानित खराब असर से ग्रस्त हैं
उसे चाहिए गुणकारी और संतुलित मात्रा में विटामिन एन
अति प्यार दुलार – यानि विटामिन एन की कमी – एक अलग तरह के व्यसन ओर ले जाता हैं
जब पोइन्ट ऑफ़ डिमिनीशिंग रिटर्न की सीमा पार हो जाती हैं ( और वो बहुत जल्दी ही होती हैं ), तब चीजो के मिलने से
कुछ पैदा नही होता, सिवाय ओर चीजो कि चाहत के
इसका सबसे बुरा असर ये हैं कि हमारे बच्चों को उपकरण स्तर की आदत हो रही है
जो की बाधक है उनकी बड़े होकर कुछ भी हासिल करने उम्मीद में
इसे भी ध्यान रखे की ज्यादातर बच्चे इस स्तर की समृद्धि पर पहुँचे हैं, ना कोइ काम कर
ना त्याग करके या अपना सर्वोतम दे कर, यह तो पहोंचे है चीखकर, डिमांड करके या छल से
यानि उनकी बढती भौतिक अपेक्साओ कोपूरी करने की प्रक्रिया में, हम बच्चों को यह भी सिखाते हैं की
उन्हें कुछ भी मिल सकता है बिना कुछ किये
यह मिथ्या ही नहीं बल्कि यह एक सबसे खतरनाक विनाशक रवैया है
जो एक व्यक्ति अपना सकता हैं
यह बहुत हद तक समझाता है कि क्यों १९५० के बच्चे
मानसिक रूप से स्वस्थ हैं जिन्हें आज के बच्चों से बहोत ही कम मिलता था,
पचास की दशक के बाद से और खासकर कुछ आखरी दशको से अति प्यार दुलार
परवरिश करने का प्रमाण बन गया हैं, तबसे बच्चो और युवा में डिप्रेसन का स्तर आसमान छू रहा हैं
बच्चे जो यह काल्पनिक कथा में विश्वास कर बड़े हो रहे है की बिना कुछ किये सब कुछ पाना
वो भावनात्मकरूप से कमज़ोर होते जाते हैं और आत्म केन्द्रित होते हैं
फिर जब वो खुद माता पिता बनते हैं वे भी अपने बच्चों को अधिक
साधन उपलब्ध करवाते हैं – खिलोने का ढेर और गेजेट्स जो बिखरे रहते हैं
ज्यादातर घरो में
उस हाल में, अति प्यार दुलार Vitamin – N की कमी, बन जाती हैं बिरासत में मिली बीमारी
ऐसा नशा जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलता हैं
इससे यह भी समज में आता है की जो बच्चो को जो चाहे उसमे से बहोत कुछ मिलता है वो उनकी ठीक से
देखभाल नही करते है
वो क्यों करेंगे?
इतने अनुभवो के बाद उन्हें पता है ओर अधिक आगे उन्हें मिलने वाला ही है
बच्चे को इससे बहेतर के लायक है
बच्चो को जरूरत है की पेरेंट्स उन्हें सुरक्षा, स्नेह् और दिशा सुचन करे
उस से परे: वे लायक है अपने माता-पिता से "हां" से कहीं अधिक बार "नहीं" को सुने
जब उनकी मनमौजी इच्छाओं की बात आती है
उन्हें रचनात्मक प्रयास का महत्व शिखने की जरूरत है बजाय उस तरफ जहा है
शिकायते, रोना, जमीन पर लेट कर पैर पटकना और चिल्लाना या माता और पिता को एक दुसरे के
इस्तमाल करना
बच्चो को शिखने की जरूरत है की जीवन में कुछ भी पाने के लिए महेनत करना ही
एकमात्र सही रास्ता है और जितना ज्यादा वह महेनत करेंगे अंतमे उतना ही संतोषजनक परिणाम होगा
बच्चो को निराशा से बचाने की प्रकिया में परेंट्स वास्तविकता को
उलट पुलट करते है
जो बच्चे की इस तरह के लाड प्यार वाले फेशन में परवरिश हुइ है, हो शकता है उसके पास वह हुनर न हो जिससे
समय आने पर वो अपने पैरो पर खुद खड़ा रह पाये
यह रहा एक सरल नियम : आपके बच्चे का जीवन सही करो, उन्हें सब दो जो
उनकी सही में जरूरत है लेकिन उनकी इच्छाओ में २५% से ज्यादा नही
में उसे कहूँगा “सौम्यता से अभाव का सिद्धांत”
जब सभी ने कहा और किया है, अंग्रेजी भाषा में सबसे अधिक चरित्र-निर्माण दो-अक्षर शब्द है
नही – NO
विटामिन एन
इसे अक्सर बार-बार बांटें
लंबे समय पर आप खुश रहेंगे, और आपका बच्चा भी
में हु जॉन रोजमोंड, लेखक और पारिवारिक सायकोलोजीस्ट, प्रेगर यूनिवर्सिटी